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Tuesday, December 9, 2014

मुझे तो तलाश है पारिजात की

तुम्हे पाने की,
ईस्वर से मैंने,
कभी प्रार्थना नहीं की,
क्यूँ करूँ ?
तुम वो खुबसुरत गुलाब हो,
जिसकी सुन्दर पंखुड़ियाँ,
कल तक जमी पड़ बिखड़ी होंगी,
ये तो दार्शनिक तथ्य है,
पर !
सच तो यही है,
मेरी अक्षमताओं का दंण्ड,
तुम्हे ना मिले,
तुम्हारे कुम्हलाने का कारन,
मैं ना बनू,
इसीलिए,
मुझे तो तलाश है पारिजात की !
जिससे अक्षुण्ण रखूँगा,
अपनी प्रसन्नता को,
जिबंत रखूँगा,
तुम्हारी सुन्दरता को,
तुम ईस्वर का उपहार,
हो सकती हो मेरे लिए,
पर !
फिर भी इस्वर से,
नहीं मांग सकता तुम्हे,
ये सब मैं ईस्वर पर ही छोड़ता हूँ,
क्यूंकि सदा मैं,
ईस्वर से,
उनको ही मांगता आया हूँ,