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Wednesday, November 26, 2014

मैं संभालना जानता हूँ मुझको

मैं संभालना जानता हूँ मुझको,
क्योंकि मैं अब तक बड़ा हुआ नहीं,
मुझे लगता है अब तक,
मैं उस बच्चे सा हूँ,
जो लड़ता है,
झगरता है,
चिल्लाता है,
मिटटी एक दुसरे पे फेंकता है,
रोता है,
जिद्द करता है,
कट्टी करता है,
मुह फुलाये अलग बैठता है,
फिर से आ कर खेलता है,
प्रेम करो खुश होता है,
डांटो तो रोता है,
नक़ल करता है,
पर बनावट नहीं कर पाता,
चेहरे पे नकाब लगा नहीं पाता,
जिसे न तो आज का कुछ पता है,
न कल का,
न आने वाले कल का,
वो स्मृतियों के भार से दबता नहीं,
बस “छण” को जीता है,