संदेह का साँप,
गले में डाल,
अपने डर को,
मेरा नाम मत दो,
अनजाने ही सही,
मैंने खुशियाँ ही दी होंगी,
जरा ठहर कर,
आएने में झांक कर देखो,
तुम्हे तुम्हारा फुफकारता साँप,
नजर आएगा,
जिसे तुमने,
खुद ही कस के पकड़ रक्खा है,
मेरे गुनगुनाने को,
जो भ्रमवश तुमने,
बहेलिया सा समझ लिया है,
जरा रुक कर,
जाँच कर,
परख तो लो,
एक बार निर्भय हो,
जीने का साहस जूटा तो लो,
याद रक्खो,
डर तुम्हे हमेशा,
दिग्भ्रमित ही करेगा,
और सहास तुम्हारी रक्षा,
मै जानता हूँ,
इसमे तुम्हारा कोई दोष नहीं,
क्योंकि ?
बचपन से ही तुम्हे,
डर ही सिखाया गया है,
डर ही सिखाया गया है,
1 comment:
Very Nice Poem
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