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Wednesday, October 1, 2014

ये पल कभी ना ख़त्म हो

बरबस ही लिखने को उद्धत होता हूँ,
तुम्हारी ही बाते,
और फिर गहरे सोच में डूब जाता हूँ,
आँखों में तैरती तुम्हारी यादें,
हाथों को रोक लेती है,
शरीर शिथिल सा हो जाता है,
शुद्ध बुध खो सा जाता है,
बस बार-बार तुम्हारी स्मृतियाँ,
हंसी, आँखों में नाचती है,
मैं मुग्ध,
किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिर,
तुम्हे देखता हूँ,
निहारता हूँ,
बस समय रुक जाये,
ये पल कभी ना ख़त्म हो,
और तुम्हे ऐसे ही खिलखिलाते देखता रहूँ,