आज मुझे अहसास हुआ
क्यूँ लोग तुझे?
मूर्तियों में ढूढ़ते है,
जब लोग,
लोगों से त्रस्त होते है,
समय की मार सहते है,
मन ही मन घुटते है,
औरो के बिकारो की बदबू झेलते है,
और चुप रहने को बाध्य होते है,
तो उनके पास एक ही बिकल्प होता है,
की मन ही मन तुझे पुकारे,
कुछ भी आकार दे,
तुझे अपने पास देखे,
तुझे महसूस करे,
जहाँ सब कुछ ख़त्म होता हुआ दिखे,
फिर भी,
तुझे देखते ही,
उलझनों की,
सुलझने की आस दिखे,
इसीलिए लोगों ने तुझे आकर दियें है,
मूर्तियों मे,
कण-कण में तुझे ढूढ़ते है,
तुझे पूजते है,
की अपना दुख तुझे अर्पण कर,
कुछ अच्छा महसूस कर सके,
1 comment:
Very Nice Poem
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