खुशियाँ
और आराम,
धन खर्च
कर खरीद सकते है,
खुशियाँ
और आराम,
बेच कर धन
खरीद सकते है,
बिनिमय ही
प्रकृति है,
पर बिनिमय
क्यों ?
खुशियाँ
और आराम तो,
छन्भंगुर
है,
और,
अनुभूति,
बिनिमय को
निर्भर नहीं,
अतः,
"अतिश्योक्ति" बिनिमय,
अहंग का
तुष्टि मात्र है,
“धन” दिखाबे की रोली है,
1 comment:
Very Nice Poem
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