जियो और जीने दो,
एक सरल वाक्य,
प्रकृति को चुनौती देती है,
परस्पर निर्भरता में भी,
स्वच्छंदता-स्वतंत्रता,
और सम्मान ढूढती है,
जबकि प्रकृति तो,
उर्जा का प्रवाह,
और रूपांतरित होते रहना है,
पर साधारण मश्तिस्क तो,
देव-दानव,
समर्थ-असमर्थ,
पोषक-शोषक,
के रूप में इसे देखता है,
प्रकृति के बनावट की अनदेखी करता है,
इस कलिष्ट प्राकृतिक तंत्र पर,
नियंत्रण का प्रयास ही,
“बुद्ध” का निर्माण करता है,