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Monday, June 10, 2013

तुम सा होता चला आ रहा हूँ


हे ईश्वर !
तुम क्या हो?
कैसे रहते हो?
क्या सब करते हो?
नहीं समझ पाता हूँ !
बनाते हो-बिगारते हो,
खुश हो या दुखी,
मैं नहीं जनता,
पर !
एक प्रश्न बार-बार उत्तर ढूढती है,
और बार-बार प्रश्नों से घिर जाती है,    
की तुम बच्चे तो हो नहीं,
क्यूंकि बच्चे तो रोते है हँसते है,
घरोंदा रेतका बनाते है तोड़ते है,
तुम अज्ञानी-मुर्ख-दैत्य-जानबर भी नहीं हो,
क्यूंकि तुम्हारे आयाम बहुत बड़े है,
फिर !
बिसमित होता हूँ  हँसता हूँ और पाता हूँ,
तुम ज्ञानी हो,
ठीक वैसे ही जैसे मैंने सिख लिया है,
घरौंदे के टूट जाने पे मुस्कुराना,
सच सहजता पे काबू पाना,
निश्चलता पे सिख की परत चढ़ाना,
बच्चे से बड़े होते होते,
तुम सा होता चला आ रहा हूँ,
तभी तो अब जा के मुझे पता चला है,
कि मेरे सारे प्रश्न भी तुम्हे घेर नहीं पाती है,
फिर भी !
तुम्हारे पास सारे उत्तर है,

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