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Saturday, February 23, 2013

बस प्रयत्न करते रहना


अब तक याद है,
मुन्शी प्रेम चन्द्र का,
ठाकुर का कुआँ,
और जोखू का वही पानी पीना,
जब दोनो ही तरफ खाई हो,
तो गिरने से क्या डरना,
जब राह तलबार की धार हो,
और चलना ही एक मात्र विकल्प हो,
तो एक ही बात ज़हन में आती है,
वही पानी कभी ना पीना !
चाहे ठाकुर का कुआँ हो,
या शेर का मुँह,
हिम्मत से लड़ना,
सहजता से जीना,
और जब तक साँस हो,
प्रयत्न करते रहना,
बस प्रयत्न करते रहना,

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