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Tuesday, January 29, 2013

चलता चला जाता हूँ.....


हारता मुस्कुराता,
आंसमा को निहारता,
चलता चला जाता हूँ,
ये सोचते हुए,
कि तक़दीर ने मुझे हराया,
या मैंने तक़दीर को,
क्योंकि ?
जब जित के सारे लक्षण मौजूद हो,
और हार फिर भी हो,
समय का सापेक्ष नियम,
अपवादों से घिरा हो,
तो दुःख का अबसाद,
चेहरे पे कालिख नहीं लगाती,
बल्कि !
मायूस, कौतुहल सी मुस्कराहट,
चेहरे पे तेज लाती है,
और औरों की नजरो में हारा,
तब खुद में जीत की गीत गाता हूँ,
ह्रदय में हल्कि सी घुटन,
मीठी सी चुभन लिए,
हारता मुस्कुराता,
आंसमा को निहारता,
चलता चला जाता हूँ,
जब दिख नहीं रहा किनारा,
कोई पदचिन्ह शेष नहीं,
समय की रुख को मोड़ने,
अबिचल खड़ा हूँ,
सामर्थ्य का पता नहीं,
पर पथ से हटा नहीं,
हारता मुस्कुराता,
आंसमा को निहारता,
चलता चला जाता हूँ,

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